नवल हो गया
सिलसिला इस तरह आजकल हो गया
एक मुखड़े पे मरना शगल हो गया
कुछ दिनों से मुझे एक चेहरा दिखा
ध्यान हौले से उसका मुझ पर गया
मैं उसे क्या कहूँ, वो कहो क्या मुझे
बस यह सोचते, दोनों चुप ही रहे
फिर आँखों ने कुछ बात ऐसी कहीं
बिन कहे बिन सुने ही पहल हो गया
बहाने से हम उनसे मिलने लगे
पर नयन अब हमें देख झुकने लगे
फिर लबों में जरा जान आने लगी
सरसराहट हुई बुदबुदाने लगी
नाम मेरा लिया जब बहुत प्यार से
प्रेम का हर निवेदन सफल हो गया
बात आगे बढ़ी फिर मुलाकात से
एक दूजे को थोड़ा समझने लगे
फिर हुआ एक दिन यूँ मेरे साथ में
हाथ अपना दिया जो मुझे हाथ में
अब किस्मत पे हम नाज करने लगे
उसे पाया तो जीवन नवल हो गया
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मनीष पाण्डेय 'मनु'
शनिवार १०-फरवरी २०२४, नीदरलैंड
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