तुम्हारे होठों को
गुलाब की पंखुड़ियों सा
नहीं लगता
तुम्हारा चेहरा
चाँद सा
नहीं खोजता
तुम्हारी चाल में
हिरणी की कुलाँचें
नहीं लगते
तुम्हारे गेसू
मुझे नागिन जैसे
नहीं डूबता
तुम्हारी आँखों की
गहरी झील में
नहीं सुनता
तुम्हारी आवाज में
सरगम के सातों सुर
नहीं पाया
तुम्हारी हँसी को
फूल बरसाते
मेरे लिए
पर्याप्त है
तुम्हारा बस
तुम होना
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
बुधवार १४-फरवरी-२०२४, नीदरलैंड
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