गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

साझा

सूरज 

भले ही साझा हो

पर अपने हिस्से की धूप

अपने-अपने चेहरे पर 

खुद ही लेनी होती है


कुँआ 

भले ही साझा हो

पर अपने हिस्से की प्यास

अपने-अपने होठों से

खुद ही बुझानी होती है


डगर

भले ही साझा हो

पर अपने हिस्से की मंजिल

अपने-अपने कदमों से

खुद ही चलकर पानी होती है


मौके 

भले ही साझा हो

पर अपने हिस्से की किस्मत

अपने-अपने कामों से

खुद ही गढ़नी होती है


आसमान

भले ही साझा हो

पर अपने हिस्से की उड़ान

अपने-अपने पंखों के सहारे

खुद ही भरनी होती है


——————————————-

मनीष पाण्डेय ‘मनु’

नीदरलैंड, गुरुवार 23 फरवरी 2023

 

कोई टिप्पणी नहीं: