सूरज
भले ही साझा हो
पर अपने हिस्से की धूप
अपने-अपने चेहरे पर
खुद ही लेनी होती है
कुँआ
भले ही साझा हो
पर अपने हिस्से की प्यास
अपने-अपने होठों से
खुद ही बुझानी होती है
डगर
भले ही साझा हो
पर अपने हिस्से की मंजिल
अपने-अपने कदमों से
खुद ही चलकर पानी होती है
मौके
भले ही साझा हो
पर अपने हिस्से की किस्मत
अपने-अपने कामों से
खुद ही गढ़नी होती है
आसमान
भले ही साझा हो
पर अपने हिस्से की उड़ान
अपने-अपने पंखों के सहारे
खुद ही भरनी होती है
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
नीदरलैंड, गुरुवार 23 फरवरी 2023
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