रविवार, 16 अक्तूबर 2022

हौसला

एक मसला हल हुआ तो दूसरा है सामने, देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

लाख दीवारें उठें पत्थर-पहाड़ों से बनी, चीर सीना पत्थरों का राह कर लेती नदी मुश्किलें कितनी खड़ी हों आज तेरे राह में देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

हो भले कितनी भयावह कालिमा अंधियार की पर उसे है मात देती एक छोटी लौ कहीं इन अंधेरे में कहीं जब खो गए हों रास्ते देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के


मुश्किलें आती रहें आँधी-तूफ़ानों की तरह, तू मगर डिगना नहीं ऊँचे पहाड़ों की तरह उलझनों की बोझ में जब पाँव थम जाने लगे देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

हारने और जीतने का होड़ है ये ज़िंदगी हार के भी फिर खड़ा हो है उसी की ज़िंदगी हारने का दर्द जब उत्साह को खाने लगे देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

कौन है जिसने यहाँ सन्ताप को झेला नहीं डूब कर उसमें मगर तुम भूल सब जाना नहीं टूटकर जब दर्द से ये दिल बिखर जाने लगे देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

राह रोकी पत्थरों ने, धार उसकी बाँट दी निर्झरों की चाल में संगीत पर उसने भरी जब कभी राहों के रोड़े, राह भटकाने लगे देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

कोई टिप्पणी नहीं: