शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

समझो बसंत आया

जाड़े की ठिठुरन अब जाने लगी है  हरी-भरी धरती भी इतराने लगी है  माघी के मेले में यारों ने मिलने बुलाया  समझो बसंत आया, समझो बसंत आया

खेतों में तिलहन और मेढ़ों पे दलहन

सरसों की पिंवरि में धरती है दुल्हन

गन्ने के खेतों में भालू ने डेरा जमाया

समझो बसंत आया, समझो बसंत आया


टेसुओं की खुशबू भरने लगी हवा में 

सिंदूरी की मस्ती छाने लगी फिजा में 

जब अमिया की डाली पे बौर लहराया 

समझो बसंत आया, समझो बसंत आया


बाड़े में इमली और बेरी पकने लगे हैं 

कच्ची कैरी के घेर अब लटकने लगे हैं 

गिलहरी ने अमरूद पर उत्पात मचाया

समझो बसंत आया, समझो बसंत आया


कोयल की कुहू से गूंजे है उपवन 

महुए के फूलों से बहका सा तन-मन 

बगिया में भौरों का झुण्ड मंडराया 

समझो बसंत आया, समझो बसंत आया


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मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग ,शनिवार 12 फरवरी 2022

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