सोमवार, 17 जुलाई 2017

पता पूछते हमारा, शहर में ये कौन आया?

टूटे अरमानों के तेज भँवर में ये कौन आया,
पुरानी यादों के फूटे खँडहर में ये कौन आया?
जमाना तो क्या, हम थे खुद को भूल बैठे,
पता पूछते हमारा, शहर में ये कौन आया?

होके जार-जार हम तो कब के मिट चुके हैं,
होके तार-तार सभी अरमां बिखर चुके हैं |
आइना भी हमको पहचानता नहीं अब,
खुदा जाने ऐसे मंजर में ये कौन आया?
पता पूछते हमारा, शहर में ये कौन आया?

हर तरफ अँधेरा सा फैला है जिंदगी में,
अपनी ही परछाई नहीं साथ में हमारे |
सूरज की रौशनी भी आती नहीं यहाँ अब,
जुगनू सी चमक लेके इधर में ये कौन आया?
पता पूछते हमारा, शहर में ये कौन आया?

सदियां गुजरती थी लम्हो में साथ उनके,
कभी गोद के सिरहाने, कभी आँचल में छुपके |
बड़ी लम्बी कहानी है मुहौब्बत की बातें,
दास्ताँ सुनाते मुख़्तसर में ये कौन आया?
पता पूछते हमारा, शहर में ये कौन आया?

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