शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

गजल - देखो

कैसी ये है सोच बीमार देखो
है मतलब से इनका सरोकार देखो

जोड़े सुहागन के जिसके सिले थे
वो जनता खड़ी यूँ ही लाचार देखो

यहाँ हुक्मरानों ने कुर्सी की खातिर
खड़ा कर दिया मुल्क बाजार देखो 

अंधेर नगरी ये कैसी अजब सी
है जनता खड़ी नग्न दरबार देखो 

शहीदों की ख़ातिर वतन के हवाले
फकत इक बना दी है मीनार देखो

है मौक़ा परस्ती की ऐसी रवायत
नहीं कोई दुश्मन नहीं यार देखो 

औरों पे उँगली उठाना सहज है
किया तुमने खुद क्या जरा यार देखो

मैं अपने गिरहबाँ में झाँकू तो जानूँ
नहीं कोई मुझसा गुनहगार देखो 

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
अलमेर, नीदरलैंड्स, शुक्रवार ०६ जनवरी २०२३ 

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