बुधवार, 9 जून 2021

सदा खुश रहना

आज तुम 
दो मुट्ठी पत्थर 
ऐसे घर लाये 
जैसे कोई खजाना हो

कंचे, पत्थर के टुकड़े 
लकड़ी के खिलौने 
हाँ! यही सब होते हैं 
बचपन की पूंजी

लेकिन
कहीं ना कहीं 
ऐसे ही पड़ती है आदत
चीजें जमा करने की 

जो आगे चलकर
पैसे, जमीन और 
ना जाने क्या-क्या 
जमा करने में 
बदल जाता है 

और इसकी लत लगने से 
आदमी
सब कुछ भुलाकर 
बस जमा-खोरी में
लग जाता है


मेरे बेटे!
मैं ये नहीं कहता कि 
साधन और सुविधाहीन रहना 
पर जमा करने की 
इसी लोभ और लत से 
बचने की कोशिश करना 

असली पूंजी 
ये साजो-सामान नहीं 
तुम्हारे मन का
संतोष है 

हो सके तो जमा करना 
दिल से जुड़े रिश्ते 
और 
जो अपने पास है 
उसमें ही  
खुश हो लेने की कला 

जैसे आज तुम 
पत्थर के इन 
धूल-मिट्टी सने 
टुकड़ों से खेल कर 
खुश हो गए

क्योंकि
जिनके पास संतोष है 
वे हर हाल में 
खुश रह लेते हैं

यही कामना करता हूँ 
कि तुम 
सदा खुश रहना
मेरे प्यारे!

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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, बुधवार 09-जून -2021

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