सोमवार, 28 अप्रैल 2003

नयी राह


चलते-चलते जीवन पथ पर,
एक नदी के सुंदर तट पर|
देखा जो तरुवर की छाया,
सुस्ताने को मन हो आया||



कर विचार यह सुंदर उपवन,
सुखकर होगा इसमें जीवन|
संगी-साथी मीत बनाये,
प्रेम भाव के दीप जलाये||

यह करते कुछ समय बिताया,
फिर नियति ने खेल दिखाया|
कल तक जिसको श्रम से साधा,
आज लगे वह पग में बाधा||



हा! कितना छल? मायामय जीवन!
पल-पल नित नूतन परिवर्तन|
तिनका-तिनका नीड़ बनाकर,
फिर चल निकले नयी राह पर||
-----------------------------------------------------
मनीष पाण्डेय "मनु"
नागपुर सोमवार, २८-०४-२००३

कोई टिप्पणी नहीं: