रविवार, 25 नवंबर 2007

...तुम हमारे थे!

मेरे गालों पर चमकते
आंसुओ के ये मोती,

या कहूं,

विरह की आग में दहकते
गरम पानी के दो बूँद,

गवाह हैं इस बात के,
कि कभी,

कि कभी....

तुम 'हमारे' थे!

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मनीष पाण्डेय "मनु"
शार्लेट, नार्थ कैरोलिना, रविवार २५ नवम्बर २००७ 

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