हे! भरत,
अच्छा हुआ
तुम तब आये,
आज आते
तो
राम को
वन भेजने का
सारा षड्यंत्र
तुम्हारा ही
माना जाता।
हे! कुन्ती,
अच्छा हुआ
तुम तब आयी,
आज आती
तो विपक्षी
सीधे तुम्हें
बंदी बनाके
तुम्हारे बेटों की
कलाइयाँ
मरोड़ देते।
हे! प्रह्लाद,
अच्छा हुआ
तुम तब आये,
आज आते तो
तुम भक्तराज
नहीं
अपने पिता के
प्राण हंता
कहलाते।
हे! सुदामा,
अच्छा हुआ
तुम तब आये,
आज आते तो
बाहर खड़ा
दरबान ही
तुम्हें टरका देता।
हे! अंगद,
अच्छा हुआ
तुम तब आये,
आज आते तो
युवराज नहीं
बंदी
बनाया जाते।
हे! दूर्वासा,
अच्छा हुआ
तुम तब आये,
आज आते तो
ऋषि मान
पूजे नहीं
लताड़े जाते।
मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, १४-अगस्त-२०२०
शुक्रवार, 14 अगस्त 2020
अच्छा हुआ
गुरुवार, 13 अगस्त 2020
अपना पराया
सटीक उत्तर,
करारा जवाब
किसे दें?
कौन अपना है?
कौन पराया?
अर्जुन ने
गुरुओं पर
तीर चलाया,
दुर्योधन ने
अपने ही
कुल दीप को
माँद में बुझाया।
सुग्रीव ने
किसी और के
कन्धे से बाण चलाया
विभीषण ने
अपने घर का
सब भेद
आक्रांता को बताया।
आपस में फूट ने
मुग़लों को
बनाया शहंशाह
और
अंग्रेजों ने
ले जाने
लूट का सामान
खोले बन्दरगाह।
आँख के बदले
निकालोगे
आँख
तो दुनिया
हो जाएगी अंधी।
और
संकुचित विचारों से
अपनी ही आत्मा
ना बनाओ
बन्दी।
किसकी कहें?
हमाम खाने में
सभी हैं
नंगे,
नहीं मिलता
स्नान का पुण्य
जब बस
गिर जाने से
कहो
हर हर गंगे।
मन को
करो साफ़
और ख़ुद के
अंदर झांक,
निकालो एक रचना,
गीत, गजल
कोई मुक्तक
या दोहा।
हम भी पढ़ेंगे,
सीखेंगे और
वाह कहेंगे।
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मनीष पाण्डेय, "मनु"
अलमेर, नीदरलैंड्स, गुरुवार 13 अगस्त 2020
अटल कीर्ति
वे नोबेल के फ़िराक़ में
जनता मूरख बन ताके
ध्यान जो भटका लीडर का
वही है मौक़ा गीदड़ का
आया कारगिल के द्वार
समझ में आया तब धोका
दुश्मन को मार भगाने को
वहाँ पर अपना झंडा गाड़
शीश दे वीरों ने बलिदान
दाँत खट्टे करेंगे हम
तभी तो छुपके करता घात
माँओं के पूत नहीं खोते
इसलिए कहता बात सम्हाल
कुर्सी को लड़ते लाज नहीं
करता हूँ तुमको आज नमन
है कीर्ति तुम्हारी सदा अटल
मनीष पाण्डेय, "मनु"
अलमेर, नीदरलैंड्स, गुरुवार 13 अगस्त 2020
मंगलवार, 11 अगस्त 2020
राहत इंदोरी को श्रधांजलि
राहत इंदोरी को श्रधांजलि
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यूँ बेरुख़ी से अपना दामन छुड़ा के चला जाएगा
सोचा नहीं था वो इस तरह दिल दुखा के चला जाएगा
यू तो रोज़ जाने कितने लोग जाते हैं इस जहान से
क्या पता था वो एक ज़लज़ला उठा के चला जाएगा
उसकी ग़ज़लों ने सिखाया ग़मों में भी मुस्कुराना
हम न समझे थे वो एक दिन रुला के चला जाएगा
मालूम था महफ़िल से होगा रुख़सत वो एक दिन
ये तो नहीं था कि भीड़ को तनहा बना के चला जाएगा
उसके होने से लिया करते थे हम राहत की साँस
मालूम न था वो दिलों में सुराख़ बना के चला जाएगा
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मनीष पाण्डेय, लक्सम्बर्ग
११-अगस्त २०२०
रविवार, 2 अगस्त 2020
हिंदी प्रेमियों के नाम लक्जमबर्ग की पाती
हिंदी प्रेमियों के नाम लक्जमबर्ग की पाती
लक्समबर्ग पश्चिमी यूरोप का एक छोटा सा देश है जिसका नाम अपनी राजधानी यानी लक्समबर्ग शहर के नाम पर है। इस देश का पूरा नाम “ग्रैंड डची ऑफ लक्समबर्ग” है और दुनिया में एकमात्र ग्रैंड डची है।
मध्यकालीन युग में लक्समबर्ग सामरिक रूप से एक महत्वपूर्ण देश रहा है। लक्सेम्बर्ग का किला चौदहवीं शताब्दी में उत्तर पश्चिम का सबसे मजबूत किला माना जाता था और सन् 1354 में इसी किले के आस पास के क्षेत्र को मिलाकर “लेट्ज़ेबर्ज” की स्थापना हुई जिसे जर्मन, फ्रेंच आदि भाषा में लक्सेम्बर्ग कहा जाता था।
जैसे अट्ठारवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के भारत में लगभग एक हज़ार छोटे-बड़े रिसायत थे उसी तरह लक्सेम्बर्ग भी उत्तरी-पश्चिमी यूरोप का एक छोटा सा रियासत था जो बाद में बरगंडी-नेदरलॅंड्स के सत्रह प्रांतों में से एक बना। इस क्षेत्र को हमेशा से ही तराई वाले देशों या ‘लो कन्ट्रीज’ के नाम से बुलाया जाता था।
बहुत से लोग लक्सेम्बर्ग के झंडे और इसके राष्ट्र गान का नाम “दी विल्हेल्मूस” होने के कारन भ्रम में पड़ जाते हैं और ये बिना कारन नहीं है। लक्समबर्ग पहले नीदरलैंड के अधीन ही हुआ करता था। नेपोलियन के पतन के बाद सन् 1814-15 में वियना में सभी युरोपियन राजनितिक परिवारों की बैठक हुई जिसे कांग्रेस ऑफ़ वियना के नाम से जाना जाता है। इसी बैठक में नेदरलॅंड्स की स्थापना हुई और “हाउस ऑफ़ ऑरेंज” के विल्लियम अलेक्सेंडर प्रथम को इसका राजा बनाया गया। इस डच राजधानी के तहत वर्तमान नेदरलॅंड्स, बेल्जियम, लक्समबर्ग और जर्मनी के बिटबर्ग का क्षेत्र आता था।
लक्समबर्ग के अलग देश बनने की भी अजब कहानी है। 1890 में जब नीदरलैंड के राजा ऐलेग्ज़ैंडर तृतीय की मृत्यु हुई तब उनकी संतान एक बेटी थी और तब ग्रैंड डची ओफ लक्समबर्ग के कार्यकारी राज्य संस्था के सदस्यों ने एक महिला को रानी स्वीकार नहीं किया और इसके परिणाम स्वरूप लक्समबर्ग को एक अलग देश की मान्यता मिली। यही कारण है कि इसका झंडा नेदरलॅंड्स के झंडे के गहरे नीले रंग को हलके और आसमानी नीले रंग से बदलकर बनाया गया है।
यह देश पश्चिम और उत्तर में बेल्जियम, पूर्व में जर्मनी और दक्षिण में फ्रांस से घिरा हुआ है। इसका कुल क्षेत्रफल ढाई हजार वर्गफुट है और कुल जनसख्या लगभग साढ़े छह लाख है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों को देखें तो यह देश प्रतिव्यक्ति आय के मामले में दूसरे नम्बर पर है। यूरोपीय संघ की कुल चार राजधानियाँ हैं जिसमें से ब्रुसेल्स को तो सभी जानते हैं पर फ्रेंकफर्ट और स्ट्रासबर्ग के लक्समबर्ग भी एक राजधानी है और यहाँ यूरोपीय संघ का मुख्य न्यायालय स्थित है।
लक्समबर्ग यूरोप के बहुत आधुनिक देशों में से एक है। हमेशा कुछ नया करने वाले इस देश का ध्येय वाक्य या मोटो है - “मीर वेल ब्लाईव वाट मीर जिन” मतलब “मैं जैसे हैं वैसे बने रहेंगे।”
इसके विपरीत, यहाँ के लोग अवसर का सही लाभ लेना जानते हैं और आगे बढ़ने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। इस छोटे से देश ने पहले बेनेलक्स फिर यूरोपीय संघ के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई। ओईसीडी, यूनाइटेड नेशंस और नाटो के भी संस्थापक सदस्यों में से है। लक्समबर्ग की कुछ झलकियां -
यूरोप देशों के वीजा को शेंगेन वीजा कहते हैं और ये शेंगेन लक्समबर्ग के ही एक गांव का नाम है जहाँ यूरोपीय संघ के निर्माण की बैठक हुई थी
वैसे तो लक्समबर्ग में तीन आधिकारिक भाषाएँ हैं लक्समबर्गीस, फ्रेंच और जर्मन लेकिन सभी को अंग्रेजी भाषा भी आती है
यहाँ के लगभग आधे (49 %) निवासी प्रवासी हैं जिनमे अन्य यूरोपीय देशों सहित विदेशी नागरिक शामिल हैं। जिसमें एक लाख से अधिक पुर्तगाली और लगभग साढ़े तीन हज़ार भारतीय शामिल हैं।
जिस प्रकार नेदरलॅंड्स प्रति व्यक्ति सायकल के अनुपात में दुनिया में पहले नंबर पर है उसी प्रकार लक्सेम्बर्ग दुनिया कारों के नाम पर पहले नंबर पर है। यहाँ के सड़कों पर अनायास ही फरारी, लूम्बर्गिनी ही नहीं बेंटले और रोल्स रॉयस जैसी गाड़ियां देखने को मिल जाएँगी
लक्सम्बर्ग में हर साल २० अगस्त और १२ सितबर के बीच एक मेला लगता है जिसे शुबरफेर (Schueberfouer) कहते हैं और यह मेला लगभग ६८० सालों से चला आ रहा है और इसमें दुनिया का सबसे बड़ा घुमन्तु होने वाला रोलर कोस्टर भी लगता है।
लक्समबर्ग शहर के पुराने किला का खंडहर अब यूनेस्को की धरोहर है और लाखों सैलानियों को यहाँ हर साल खींच लाता है। यदि आप भी इसका मजा लेना चाहें तो “पेत्रुसबस” नाम की सड़क पर चलने वाली रेलगाड़ी जैसी सवारी का मजा लेते हुए शहर के इतिहास को जानने का मजा लीजिये।
दुनिया के हर बड़े शहर की तरह यहाँ भी भारत की पहचान और गौरव यानि महात्मा गाँधी की प्रतिमा यहाँ के मुख्य उद्यान में भी प्रतिमा लगी है। इस प्रतिमा को १९७३ में स्थापित किया गया था जिसे भारत के एक बड़े मूर्तिकार और यह प्रतिमा इस बात में अनूठी है कि इसमें गांधी जी अपने प्रचलित मूर्तियों से काम उम्र के लगते हैं और उन्होंने अपना चिर परिचित चश्मा नहीं पहना है
लक्समबर्ग विश्व का पहला देश है जिसमें स्थानीय यातायात के सभी साधनों को मुफ्त कर दिया है, आपको यहां आने पर दूसरी श्रेणी में बस, ट्रेन या ट्रॉम आदि में यात्रा करने के लिए कोई टिकट लेने की आवश्यकता नहीं है
यह शहर घाटी और पहाड़ी से भरा हुआ है और एक स्थान पर 65 मीटर ऊँची लिफ्ट है जिसमें से ऊपर-नीचे आते जाते पुराने शहर का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। और डचेस शार्लेट ब्रिज से पुराने किले के तराई का इलाका इतना खूबसूरत दिखता है की आप अपने मोबाइल या कैमरे से तस्वीर लिए बिना नहीं रह सकते।
कभी आइये लक्समबर्ग में आपका स्वागत है।