मंगलवार, 11 अगस्त 2020

राहत इंदोरी को श्रधांजलि

राहत इंदोरी को श्रधांजलि

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यूँ बेरुख़ी से अपना दामन छुड़ा के चला जाएगा

सोचा नहीं था वो इस तरह दिल दुखा के चला जाएगा


यू तो रोज़ जाने कितने लोग जाते हैं इस जहान से

क्या पता था वो एक ज़लज़ला उठा के चला जाएगा 


उसकी ग़ज़लों ने सिखाया ग़मों में भी मुस्कुराना

हम न समझे थे वो एक दिन रुला के चला जाएगा


मालूम था महफ़िल से होगा रुख़सत वो एक दिन

ये तो नहीं था कि भीड़ को तनहा बना के चला जाएगा 


उसके होने से लिया करते थे हम राहत की साँस 

मालूम न था वो दिलों में सुराख़ बना के चला जाएगा 


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मनीष पाण्डेय, लक्सम्बर्ग

११-अगस्त २०२०

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