मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

बरसात

बरसात 
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कभी कभी सोचता हूँ 
ये बरसात भी ना 
जाने कितने 
तरह की होती है 

जब बरसती है 
बिछुड़े प्रेमी 
नैनों से 
तो उसके जलते
अरमानों को
और दहकाती है 
लेकिन जब गिरे 
धरती पर 
वर्षा की
फुहार बनकर तो 
तो मिट्टी की सौंधी
खुशबू फैलाती है 

जब बरसती है 
जेठ की दुपहरी में 
सूरज से आग
तो बूढ़े किसान के
दिल में 
हूक उठाती है 
और जब होती 
सावन में  
बादलों से बरसात 
तो खेतों में फसलें 
उगाती है 

कभी तो 
पिताजी के गुस्से में
झिड़कियों 
की होती है बरसात 
तो कभी 
माँ की ममता में
बरसती है 
दुलार की सौगात 

कभी 
ऊपर वाले की 
कृपा से होती है 
खुशिओं की बरसात 
तो कभी 
मुशीबतों की बारिस में 
बिगड़ते हैं हालात

कभी बरसात  
का पानी
बहा ले जाता है पूरा गांव
तो कभी 
स्कुल में कराता है छुट्टी
ताकि बच्चे चला सकें 
कागज की नाँव 

बरसात 
तुम्हारी बात गजब है 
छठा निराली है 
तुम्हारे आने से 
कहीं दुःखों का सैलाब 
तो कहीं छा जाती 
खुशहाली है 

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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, मंगलवार 29-दिसम्बर-2020

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