मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

चाँद

चाँद 
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चाँद भी 
बहरूपिया
और छलिया है 

कभी तो
प्रेमिका के
सुन्दर मुखड़े सा 
दिख जाता है 
या कभी
उसकी याद में 
दिल में
टीस जगाता है 

कभी तो 
चौथ की पूजा के समय 
बादलों में
छुपकर सताता है 
तो कभी अँधेरी रात में 
राहगीरों को
राह दिखाता है 

कभी तो 
दादी की कहानी में 
पीपल के पेड़ वाले 
भूत को जगाता है 
तो कभी 
शरद पूनम की रात में 
खीर को 
अमृत बनाता है 

कभी तो 
चंदा मामा बनकर 
बच्चों को दो निवाला 
और खिलाता है 
तो कभी दूर का 
खिलौना बन 
बच्चों को ललचाता
रुलाता है 

चाँद भी 
जाने कितने 
रूप दिखाता है 

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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, मंगलवार 29-दिसम्बर-2020

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