गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

तलाश!

तलाश,
हाँ तलाश,
एक मंजिल की,
जिसने मुझे आगे बढ़ने
को मजबूर किया|

घर से गली
गली से गाँव,
पचपन से जवानी तक,
बढ़ता गया
कदम-दर-कदम|

हर कदम पर
यूँ लगा कि
जिसकी तलाश में
निकल आया इतनी दूर-
सामने खड़ी है
बस-
अगले कदम पर|

देखते देखते
दिन, महीने और सालों
निकल गए
इस तलाश में,
और
मृगमरीचिका की
इस दौड़ में,
खो दिया है खुद को
जाने किस मोड़ पर|

और अब
इक नयी तलाश है,
तलाश-
अपने अस्तित्व,
अपनी पहचान की!

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मनीष पाण्डेय "मनु"
शार्लेट, नार्थ कैरोलिना, गुरुवार २८ फरवरी २००८

2 टिप्‍पणियां:

दीपक ने कहा…

me also think so .very nice poetry
,keep on writing ...

Ashwini Kesharwani ने कहा…

manish ji,
bahut achchhi kavita, badhai..
prof. ashwini kesharwani