मंगलवार, 28 जुलाई 2020

कविता की खुशबु

देर रात
लगा जैसे
किसी ने
आवाज लगाई

देखा तो
पता चला
एक कविता
बैठी है
मेरे सिरहाने
चुपके से आकर

अचंबित!
मैंने पूछा
अरे कविता तुम?

प्यारी सी
मुस्कान के साथ
बोली
तुम नहीं आये न
बहुत दिनों से
मेरे पास
तो मैं ही
चली आयी
तुम्हारा हाल पूछने-
अच्छे तो हो न?

नहीं,
कई दिनों से
दिल उदास था
और कुछ
अच्छा
नहीं लग रहा था
लेकिन
तुम आयी हो ना
तो अब
मेरा दिल
बहल गया है|

तुम्हारा शुक्रिया
मेरी कविता,
मुझे
ख़ुशी हुयी
ये जानकर
कि तुम्हें 
फ़िक्र है मेरी| 

कविता 
फिर से मुस्कुराई 
और बोली 
मैं गई ही कब थी
तो आऊँगी
मैं तो
तुम्हारे अंदर ही हूँ
जब भी
अपने भीतर झाकों
मुझे हमेशा
अपने साथ पाओगे |

मैंने हाथ बढ़ाया
उसे छूने
तो वहां
कोई नहीं था
मगर
मेरे हाथो में
एक भीनी सी
खुशबु

जरूर भर गई थी

खुशबु
एक नयी
कविता की

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