परदेसी
—————————— आसमान में तारामण्डल देख मन ही मन गुनता हूँ मेरा घर किस दिशा में होगा? घड़ी देख के अंदाजा लगाता हूँ कितना बजा होगा वहाँ अभी? कल्पना करता हूँ माँ क्या कर रही होगी? याद करता हूँ मैं क्या करता था जेठ-वैशाख की उजली रातों में? घर लौटते हुए सड़क छोड़ गली पकड़ते ही बचपन की गली याद आती है गली की छोर से घर का दरवाजा देख माँ को खोजता हूँ दुआरे पर खड़ी राह तकते स्कूल से आने में जब देर हो जाती थी ब्याह के पिया घर आई बिटिया की तरह हर छोटी-बड़ी बात पर बाबुल के घर को याद करते हैं परदेसी भी —————————— मनीष पाण्डेय ‘मनु’ नीदरलैंड्स, शनिवार 14 मई 2023 |
परदेसी
—————————— असमान म छाए तराई ल देख के मने मन म गुनथंव मोर घर कोन दिसा म होही? घड़ी ल देख के बिचार करथंव उंहा का टाइम होत होही सोंचे लागथंव दाई हर अभी का करत होही? सुरता करथंव मैं काय करंव जेठ-बईसाख के अंजोर रथिया? काम ले घर वापिस आत सड़क ले घर के रद्दा आय म लाइकाइ के गली हर सुरता आथे आऊ दुरहिया ले घर के मुंहटा देख दाई ल टोहे लागथे आँखी बिहाव-पठौनी होय बेटी कस घेरी-घेरी माइके ल सुर्राथें परदेसिया भी ———————————— मनीष पाण्डेय ‘मनु’ नीदरलैंड्स, शनिवार 14 मई 2023 |
सोमवार, 14 अक्टूबर 2024
परदेसी
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