सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

बात दिल की

बात दिल की ज़ुबाँ पर ना लाना कभी 

क्या हुआ है किसी का जमाना कभी 


तुम जो दिल खोल कर बात कह जाओगे 

फिर हँसी के ही किरदार रह जाओगे

उँगलियाँ तो उठाते सभी हैं यहाँ  

गलतियाँ भी गिनाते सभी हैं यहाँ 

इनके झाँसे में देखो ना आना कभी 


जिन चरागों को आंधी बुझा ना सकी

उनको साँसों की रफ्तार भारी पड़ी 

कश्तियाँ जो समन्दर को थीं नापती

उनको दीमक किनारे में आकर लगी 

खेल में जीत तो मात खाना कभी 


हाथ की सिलवटें माथ पर छप गईं

दौड़ते-भागते ज़िंदगी खप गई 

चंद रुपयों की खातिर जवानी गई 

ठोकरों में भले जिंदगानी गई 

हार कर भी मगर मुस्कुराना कभी 


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मनीष पाण्डेयमनु

सोमवार 21 अक्टूबर 2024, नीदरलैंड

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