बात दिल की ज़ुबाँ पर ना लाना कभी
क्या हुआ है किसी का जमाना कभी
तुम जो दिल खोल कर बात कह जाओगे
फिर हँसी के ही किरदार रह जाओगे
उँगलियाँ तो उठाते सभी हैं यहाँ
गलतियाँ भी गिनाते सभी हैं यहाँ
इनके झाँसे में देखो ना आना कभी
जिन चरागों को आंधी बुझा ना सकी
उनको साँसों की रफ्तार भारी पड़ी
कश्तियाँ जो समन्दर को थीं नापती
उनको दीमक किनारे में आकर लगी
खेल में जीत तो मात खाना कभी
हाथ की सिलवटें माथ पर छप गईं
दौड़ते-भागते ज़िंदगी खप गई
चंद रुपयों की खातिर जवानी गई
ठोकरों में भले जिंदगानी गई
हार कर भी मगर मुस्कुराना कभी
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
सोमवार 21 अक्टूबर 2024, नीदरलैंड
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