रविवार, 24 मई 2020

मेरे साथ चल

मेरे साथ चल
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तुम्हें स्वीकार मेरा साथ हो तो साथ चल
दे कर मेरे हाथों में अपना हाथ चल

नहीं मैं राम के जैसा कोई आदर्श वाला
न कृष्ण के जैसा ही कोई गुण निराला
भले न ठाठ हो ऊँचे महल में रहने वाला
मगर हाँ बाँट के खाऊँगा अपना हर निवाला

तुम्हें किस्से सुनाने है मेरी हर बात के
करूँ साझा तुम्हारे साथ हर दिन-रात चल

जब मन उदास हो, तो बस चुप बैठ जाता हूँ
कुछ हाथ लग जाए, तो फिर मैं ऐंठ जाता हूँ
कोई जो खीझ होती है, तो फिर बड़बड़ाता हूँ
लगे कोई बात अच्छी तो, उसे गुन-गुनाता हूँ

तुम्हें साथी बनाना है मेरे हर रंग का
बतानी है मेरे दिल की तुम्हें हर बात चल

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मनीष पाण्डेय "मनु"
लक्सेम्बर्ग, रविवार  २४ मई २०२०

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