बुधवार, 27 मई 2020

शब्द चितेरा


शब्द चितेरा 
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कलम तूलिका हाथ लगा के, भावों से भर जाता हूँ
एक चितेरा शब्दों का, गीतों से रंग सजाता हूँ


कभी प्रेम की लीला रचता, या स्वारथ का दावानल
कभी दिखाता महासमर, या कभी सजाता रंग-महल
कभी बुढ़ापा कभी बाँकपन, सबके रूप दिखाता हूँ

कहीं उड़ेला गंध प्रेम का, कहीं प्रेम निर्वासित मन
कहीं छटाएँ हरियाली की, कहीं कटीले निर्जन-वन
कहीं रात की काली छाया, कहीं धूप बरसाता हूँ

केवल सुख से मोह नहीं, संताप भी रँगा करता हूँ
कमी हुई जो राग-द्वेष में, नव भावों से भरता हूँ
माँ की धवली आँचल में, नवजीवन रंग खिलाता हूँ

शब्दों को ऐसे बाँधा है , भावों के अनुबन्धों में
जीवन की कविता रंगी है, सतरंगी से छन्दों में
देश प्रेम का रंग बसंती, माथे पे चमकाता हूँ

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मनीष पाण्डेय "मनु"
लक्सेम्बर्ग, बुधवार  २७ मई २०२०

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