बुधवार, 6 मई 2020

कोविद-१९ के दोषी कौन?

नीली आँखें
और अति गौर वर्ण,
तुम्हारा रूप तो
अतुलनीय है|

भ्रम होने लगता है
तुम्हे देख कर,
देवदूत?
यदि नहीं तो संभवतः
यक्ष या गन्धर्व?

देखा तो नहीं उन्हें
किन्तु लगता है,
वो तुम जैसे ही
दिखते रहे होंगे|


छोटे-छोटे
भू-भाग में बसे
किन्तु तुम
विश्व विजयी
और महा शक्तिशाली|

तुम्हारा
धन और वैभव
विशाल है,
और
सुख-सुविधाओं में
तुम्हारा देश
इंद्रलोक के सामान|

स्वप्न है
अनगिनत लोगों का,
तुम्हारी धरती पर
आना और यहाँ बसना|

क्या
यही अभिमान था
जो सर चढ़ गया?

जो तुमने
ये तय कर लिया
कि कोरोना
तुम्हे छू नहीं सकता|

तुमने संभवतः
ये भी मान लिया था
कि कोविद-१९
एशिया और अफ्रीका
के गरीबों की
बीमारी है|

क्या इसी
भ्रम में मंत्र-मुग्ध
घूम रहे थे स्वछन्द,
जब कोरोना का विषाणु
धीरे-धीरे जमा रहा था
अपना पांव?

बच्चे-बूढ़े और युवा,
इतने लोग
समा गए
काल की गाल में,
ये सब कैसे हुआ?

सुना है कि
खाट कम पढ़ रहे थे
लोगों को सुलाने,
फिर छोड़ दिया
उनको किसी कोने में
जो पहुँचे थे
आखरी पड़ाव पर|

दिया होगा चीन ने
जन्म इसे
जाने-अनजाने,
लेकिन
इतिहास
जब खोजेगा
इस महामारी
के विस्तार का हेतु-
तो उसमे
तुम्हारा नाम भी होगा|

पूरी दुनिया में
इसका प्रकोप
बढ़ाने के दोषी तो
तुम कहलाओगे
हाँ तुम!


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मनीष पाण्डेय "मनु"
लक्सेम्बर्ग, ६ मई २०२०

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