बुधवार, 3 जून 2020

कठपुतली - 1

कुदरत के इस रंगमंच का मानव रे तू कठपुतली है

चाँद के दर पे जा पहुंचा, एक बनाके उड़न खटोला
जीत लिया संसार कि जैसे गाल बजाता था बड़बोला
एक विषाणु आया है और देख हुई हालत पतली है
कुदरत के इस रंग मंच का....


जंगल काटे, धरती बाँटी, सागर को भी छान लिया था
उड़े गगन में ऐसे जैसे खुद को ईश्वर मान लिया था
तूने सोचा इत्ते भर से किस्मत तेरी चल निकली है
कुदरत के इस रंग मंच का...


छोटे-मोटे देशों की क्या बड़े-बड़े बेहाल हुये हैं
जहां-तहां बिस्तर पे देखो पड़े-पड़े कंकाल हुये हैं
धंधा पानी चौपट है पर जान बचाना ही असली है
कुदरत के इस रंग मंच का....

कोई टिप्पणी नहीं: