बुधवार, 3 जून 2020

मैटर उठा के लिखता हूँ

कविता तो मैं इधर-उधर से, मैटर उठा के लिखता हूँ
पापा लाईक नहीं करते, छुपके-छुपाके लिखता हूँ

लिखने-कहने जैसा क्या जो, आलरेडी मौजूद नहीं
मेरे जैसे न्यू-कमर्स का, यूँ भी कोई वजूद नहीं
मैं भी किसी से कम नहीं, ये ईगो चढ़ाके लिखता हूँ
कविता तो मैं...

पढ़ने से जादा लिखता, एव्हरी-बडी को सुनाता हूँ,
तुलसीदास से बेटर है, सोच के मैं ईतराता हूँ
ऐरी-गैरी कैसी भी हो, स्टाइल दिखाके लिखता हूँ
कविता तो मैं...

अपने मन-की-बात ही कहना, सिस्टम आज प्रभावी है
छोड़ दो मज़दूरों की बातें, सीजन नहीं चुनावी है
अच्छे से दोनों कानों में, कॉटन लगा के लिखता हूँ
कविता तो मैं...

जिनको नहीं पसंद आ रही, आँखें अपनी कर लें क्लोज़
अच्छी जिनको लग जाए, फ़ॉर्वर्ड करते जाएँ रोज़
दुनिया चाहे दे गाली, मैं स्माइल सजाके लिखता हूँ
कविता तो मैं...

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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, मंगलवार ०२-जून-२०२०

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