रविवार, 30 मई 2021

काजल के निशान - 2

बिछुड़ते हुए 
जब तुम 
मेरे सीने से लिपट
रोने लगी थी 
और मैंने तुम्हें
अपनी बाँहों में भर लिया था 

तभी शायद 
मेरी कमीज की बाँह पर 
लग गया  
तुम्हारी भीगी आँखों का 
काजल

उन्हीं आँखों का काजल
जिन्हें देख मैं 
बावरा हुआ जाता था

पता है
मेरी कमीज की बाँह पर 
वो निशान आज भी है 

बहुत कोशिश की 
छुड़ाने की 
उस निशान को 

साबुन रगड़े 
निम्बू के रस लगाए
और ना जाने 
क्या-क्या जतन किये 
पर निशान गया नहीं

बिलकुल वैसे ही 
जैसे मेरे दिल में 
तुम्हारा प्यार की छाप
अमिट है 

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
लक्सेम्बर्ग, रविवार ३० मई २०२१

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