रविवार, 25 नवंबर 2007

चाहत

आखरी साँस तक
अपनी हर साँस में
सजाता रहूँगा
कभी न पूरी होने वाली
'चाहत'
तुम्हे पाने की!

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Manish Ji,
Pahle to aapko phir dhanaywaad dena chahti hun ki aapne meri tippadi ko khule dil se sweekar kiya..

Aapki kavita "चाहत", bura naa maane,sahi nahi hai..
"चाहत" shabda ka matlab hi hota hai kisi chiz ko pane ki iksha..Aur iksha se upjati hai use pane ki "चाहत"..Aur jadi ye soch liya jaye ki kabhi na poori hone wali "चाहत"..to wo chahat hi nahi hai, mera vichar se..
Ho sakta hai ki aapka mat different ho.Ya aapki paristhitiyaan kuch aur ho per ye mera maanna hai ki "चाहत" wo hoti hai jise hum poori karne ki koshish me tabdil karte hai..
Mera to yahi mat hai..
Waise aapki kavita heart touching hai,really meri aakhon me bhi aasoon aa gaye pad kar..Aur sach maine ise kai baar pada..Lekhak ka dil utar aaya hai is kavita me..
God bless you..

Manish Pandey ने कहा…

रिया जी,
जहाँ मत होंगे वहाँ मतान्तर भी होंगे ही, तो फिर उसमें बुरा मानने की बात क्या है? और फिर कोई नया रचनाकार ऐसे ही तो निखरता है. मैं आपकी हर टिपण्णी को धन्यवाद सहित स्वीकार करता हूँ.

अब रहा सवाल 'चाहत' का तो मेरे हिसाब से 'इच्छा' और 'चाहत' में थोडा अंतर है. desire और wish के बीच एक फरक होता है. 'इच्छा' और 'कामना' के बीच एक अंतर होता है. और ये तो आप भी जानती हैं की इंसान के जीवन में उसकी हर 'चाहत' या 'कामना' पूरी नहीं हो सकती.

उदाहरण के लिए मेरी इस कविता का स्रोत, वो मेरे दिल की चाहत है... और चाहत ही रह जायेगी...

और फिर मैं ये मानता हूँ की इंसान जब तक कुछ खोता नहीं है.. तब तक उसको पाने की कीमत नहीं पता चलती

एक नई कविता आपकी सेवा में प्रस्तुत है.. कृपया पढ़कर आपने मत से आवागत कराइये...
धन्यवाद सहित,
मनीष कुमार पाण्डेय