बुधवार, 31 मार्च 2021

बहार

फिर से खिलने लगी हैं 
कलियाँ डालिओं पर
निकल रहे हैं
नए पत्ते
पीले-हरे से रंगों के 

फिजा में बहार 
बस आने को है 
हर साल की तरह 

इन्हे फर्क नहीं पड़ता
इस बात का 

चाहे वे बच्चे
बड़े हो गए हों 
जो खेलते थे 
इन पेड़ों की
डालियों से लटकर 

या अब वो माली 
जीता नहीं 
जिसने उन्हें पौधे से 
पेड़ बनाया 
अपनी देख-रेख में 

इस बात से भी नहीं 
कि कोई ले जायेगा 
इनके फूल तोड़कर 

सजाने को 
किसी के बालों में,
किसी मेज के गुलदान में
किसी मंदिर-मस्जिद, 
गुरूद्वारे-गिरजा घर में 
या कहीं और 

नहीं ले गए तो भी
ये फूल यूँ भी गिर जायेंगे 
सूख या गलकर 

फर्क नहीं पड़ता इन्हें 
कि कोई निहारे और 
कैद करे अनगिनत 
चित्रों में 
या कोई हड़बड़ी में 
निकल जाये सामने से 
बिना निहारे या सराहे 


वे तो बस खिलते हैं 
कि बस उन्हें 
खिलना ही आता 
बहारों को लाने 
फ़िज़ाओं में 

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