नदी जानती है
उसका का अपना
कुछ नहीं
ना पानी
ना डगर
ना धार
पत्थर के टीले
उसे ठेलते
तो मुड़ती जाती
इधर से उधर
पठार
उसे बहा देते
तो आगे बढ़ जाती
हिलोरें मारते
और पानी तो
उसे मिलता है
पहाड़ों की कोख से
या वर्षा की फुहार से
फिर भी वो
चलती जाती है
कलकल के गीत गाते
नागिन सी बलखाते
हिलोरों की डग भरते
क्योंकि
उसका लक्ष्य तो
उसी अनंत में समा जाना है
बनी थी जिसके
अंश से
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
नीदरलैंड्स, गुरुवार 11 मई 2023
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