गुरुवार, 11 मई 2023

नदी

 नदी जानती है

उसका का अपना 

कुछ नहीं


ना पानी

ना डगर

ना धार 


पत्थर के टीले

उसे ठेलते

तो मुड़ती जाती 

इधर से उधर 


पठार

उसे बहा देते

तो आगे बढ़ जाती

हिलोरें मारते


और पानी तो

उसे मिलता है

पहाड़ों की कोख से

या वर्षा की फुहार से


फिर भी वो

चलती जाती है

कलकल के गीत गाते

नागिन सी बलखाते

हिलोरों की डग भरते


क्योंकि

उसका लक्ष्य तो

उसी अनंत में समा जाना है

बनी थी जिसके 

अंश से


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मनीष पाण्डेय ‘मनु’

नीदरलैंड्स, गुरुवार 11 मई 2023

 

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