गोरे अंग्रेजों को तो
भूखे-नंगों, अगड़े-पिछड़ों ने
मिलकर निपटाए,
काले अंग्रेजों से शोषित
भारत माँ को भला बताओ
कौन बचाये?
जालियाँवाला बाग के
बंदूँकों का घोड़ा
दबा विदेशी हाथों से था,
राजपुताना के वीरो को
छलने वाला दाँव
उन्हीं मक्कारों में था,
लेकिन ये हैं कौन-
जो अपने ही लोगों के
सर-सीने पर बूट चलाये?
भारत माँ को…
मर जाने तैयार मगर
अपनी झाँसी देने
वो तैयार नहीं थी,
भीखा, अरुणा, कमलादेवी
सावित्री, बेगम हजरत, दुर्गा थी
लाचार नहीं थी,
पदक जीतने वाली बेटी
सिसक रही है घर में
किससे लड़ने जाये
भारत माँ को…
भरे सदन में नेहरू को
गरियाने वालों के भी
पीठ थपाये जाते,
एक वोट से कुर्सी टूटी
फिर भी डिगे बिना
गीत नये वो गाये जाते,
अब कैसे हैं नायक
जो कुर्सी की खातिर
जनता में द्वेष कराये
भारत माँ को…
तीन लाख का सूट
डेढ़ का चश्मा कोई डाल
फक़ीरी झाड़ रहा है,
भेड़ चाल चलती जानता को
जुमलों से भरमाते
झण्डे गाड़ रहा है,
चौकीदारी उसके हिस्से
एक-एक को चुनकर जो
निपटाता जाये
भारत माँ को…
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
सोमवार 01 अप्रैल 2024, नीदरलैंड
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