शुक्रवार, 29 मार्च 2024

लुटेरा

बस उनका मसीहा हुआ जा रहा है

लुटेरा जिन्हें बाँट कर खा रहा है 


फकीरी में उसके बड़े शान-ओ-शौकत

चुकाई मगर किसने है इनकी कीमत

ये लाली सजाने को होठों पर अपने

जिगर किसके खंजर वो चलवा रहा है


जो अपने ठहाकों से फ़ुरसत मिले तो

जरा गौर उनपर भी तुम करके देखो

नहीं कोई जिनकी वजह सुनने वाला

गला जिनका रोते रूँधा जा रहा है


मुबारक तुम्हें ख्वाब पूरे हुए जो

मगर अपने पीछे मुड़ो और देखो

तुम्हारे तमाशे को रौशन बनाने

वो किसके घरौंदों को सुलगा रहा है


जूती के ठोकर पर रक्खी है दुनिया

लगता हो शायद तुम्हें आज ऐसा 

लेकिन समझ लो समय के बही में

हिसाब हर कदम का रखा जा रहा है 


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मनीष पाण्डेय ‘मनु’

शुक्रवार 29 मार्च 2024, नीदरलैंड

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