ओ भौंरे!
रूक जा वहीं
झूमने दे अभी
टहनी के काँधों पर
झूलने दे जरा
पत्तियों की गोद में
देखता नहीं
अभी तो आयी हैं
सूरज की किरणें
और बस
आती ही होगी
पूर्वा भी
सन-सन के गीत गाते
थोड़ा तो
खेलने दे हमें
ओस की गुड़िया के साथ
कह देती हूँ
नहीं आना तुम
मेरे पास इतनी जल्दी
क्योंकि
तुम्हारे छूने से
खो जाता है मेरा बचपन
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
रविवार ०३ मार्च २०२४, नीदरलैंड
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